देश के आदिवासी समाज को सशक्त बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह के विकास मिशन की शुरुआत कर रहे हैं. यह आजादी के बाद पहला ऐसा मिशन है जो पीटीवीजी यानी विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह के समग्र विकास को सुनिश्चित करेगा. पीएम पीवीटीजी 24 हजार करोड़ रुपये की योजना है.

दरअसल वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही पीएम नरेंद्र मोदी देश के आदिवासी समाज के जनजातीय समूह के विकास के लिए लगातार कार्यरत हैं.

विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह देश के 18 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 75 पीवीटीजी देश के 220 जिलों में रहते हैं, जिनकी आबादी लगभग 28 लाख है. ये जनजातियां बिखरी हुईं, दूरदराज और दुर्गम बस्तियों में रहती हैं. इस योजना इनके समाज के लोगो को सड़क, दूरसंचार कनेक्टिविटी, बिजली, सुरक्षित आवास, स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता जैसे बेहतर और बुनियादी सुविधाओं आसानी से उपलब्ध और इनके विकास में सहायता प्रदान करेगा. इस योजना के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य पोषण और स्थायी आजीविका के अवसर और सुविधा मिल पाएगी.

पीएम का आदिवासी समाज के कल्याण से रहा विशेष लगाव
आदिवासी समाज के कल्याण की कोशिशों की झलक इसी साल आम बजट के दौरान भी मिली, जब वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने आम बजट 2023-2024 में जनजातीय मामलों के लिए 15,000 करोड़ रुपये आवंटित किए. यह पिछले साल घोषित राशि से लगभग पांच गुना अधिक थी.

तमाम योजनाओं और घोषणाओं के साथ बजट का फोकस उत्तर पूर्व के राज्यों सहित सभी राज्यों की जनजातीय आबादी पर रहा. इसके अलावा कई राजनीतिक और सामाजिक कदम भी उठाये गए, ताकि आदिवासी समाज को सशक्त किया जा सके. इसमें सबसे प्रमुख कदम रहा आदिवासी जनजातीय समाज से आने वाली द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद पर आसीन करवा कर मोदी सरकार ने आदिवासियों का गौरव बढाया.

आज देश में लगभग 600 से अधिक आदिवासी जातियां हैं, लेकिन पहले की सरकारों में इन्हें वो पहचान नहीं मिली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदिवासी क्रांतिकारियों को सम्मान देते हुए उनके लिए स्मारक बनाएं और 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती पर देश के इतिहास और संस्कृति में जनजातीय समुदायों के योगदान को याद करने के लिए जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में जनजातीय लोगों का जीवनस्तर पहले के मुकाबले अच्छा हुआ है. शिक्षा के मोर्चे पर प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक में आदिवासी बच्चों की भागीदारी बढ़ी है. 2004 से 2014 के बीच केवल 90 ‘एकलव्य स्कूल’ खुले थे, जबकि 2014 से 2022 तक मोदी सरकार ने 500 से ज्यादा ‘एकलव्य स्कूल’ स्वीकृत किए, जिनमें से 400 से ज्यादा स्कूलों में पढ़ाई शुरू भी हो चुकी है और एक लाख से ज्यादा जनजातीय छात्र इन स्कूलों में पढ़ाई भी करने लगे हैं.

शिक्षा से लेकर आवास तक पर जोर
आदिवासी युवाओं के सामने शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती भाषा की आई है लेकिन अब नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा में पढ़ाई का विकल्प भी खोल दिया गया है. जिस कारण आदिवासी बच्चे, आदिवासी युवा अपनी भाषा में पढ़ सकेंगे. स्वास्थ्य सुविधाओं में ‘आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ में करीब 91.93 लाख आयुष्मान कार्ड के लाभार्थी जनजातीय वर्ग से ही हैं.

इसके अतिरिक्त लगभग 68 लाख जनजातीय लोग प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के तहत आवास के लिए पंजीकृत हैं, जिनमें लगभग 63 लाख आवास मंजूर हो चुके हैं. इनमें से भी 47.17 लाख आवासों का निर्माण पूरा हो चुका है. इसके अतिरिक्त स्वच्छता मिशन के तहत 2014-2015 से लेकर अभी तक जनजातीय वर्ग के 1.47 करोड़ घरों में शौचालय का निर्माण हुआ है.

अगले तीन वर्षों में 3.5 लाख आदिवासी छात्रों वाले 740 एकलव्य माडल आवासीय विद्यालयों के लिए 38,800 शिक्षकों और सहायक कर्मचारियों की केंद्रीय रूप से भर्ती की जाएगी. इसके अतिरिक्त अब 5 छात्रवृत्ति योजनाओं के तहत 2500 करोड़ रुपये से अधिक के वार्षिक बजट के साथ प्रत्येक वर्ष 30 लाख से अधिक छात्रों को छात्रवृत्ति दी जाती है.

देश के अलग-अलग राज्यों में तीन हजार से अधिक ‘वन धन विकास केंद्र’ स्थापित किए गए हैं. लगभग 90 लघु वन उत्पादों पर सरकार MSP दे रही है. 80 लाख से ज्यादा सेल्फ हेल्फ ग्रुप आज अलग-अलग राज्यों में काम कर रहे हैं जिसमें सवा करोड़ से ज्यादा सदस्य जनजातीय समाज से हैं और इनमें भी बड़ी संख्या महिलाओं की है. मोदी सरकार का जोर जनजातीय कला को प्रमोट करने, और युवाओं के कौशल को बढ़ाने पर भी है. देश में नए जनजातीय शोध संस्थान खोले जा रहे हैं.

इन प्रयासों से जनजातीय युवाओं के लिए उनके अपने ही क्षेत्र में नए अवसर बन रहे हैं. इसी कारण आज भारत के जनजातीय समाज द्वारा बनाए जाने वाले उत्पादों की मांग ना केवल भारत में लगातार बढ़ रही है बल्कि ये विदेशों में भी निर्यात किए जा रहे हैं. ट्राइबल प्रोडक्ट्स ज्यादा से ज्यादा बाजार तक आयें, इनकी पहचान बढ़े, इनकी डिमांड बढ़े, केंद्र सरकार इस दिशा में भी लगातार काम कर रही है.

आदिवासी जनजातीय समाज के साथ प्रधानमंत्री मोदी का अनुभव तब से है जब वो सक्रिय राजनीति में नहीं थे और एक प्रचारक के तौर पर समाज में काम करते थे.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

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