वायु प्रदूषण से हर साल दुनिया में 90 लाख मौतें, 18 फीसदी अकेले भारत में… जानिये कितनी घटी उम्र

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वायु प्रदूषण एक विकराल समस्या बन गई है. इसकी वजह से दुनिया भर में मौतों और बीमारियों का आंकड़ा साल दर साल बढ़ रहा है. मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य भी प्रभावित हो रहा है. लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ पॉल्यूशन नामक पत्रिका में 2020 में प्रकाशित एक प्रमुख अध्ययन से पता चला है कि प्रदूषण इंसान के लिए “सबसे बड़ा अस्तित्व संबंधी खतरा” बनकर उभरा है.

वायु प्रदूषण से हर साल कितनी मौतें?
वायु प्रदूषण की वजह से हर साल दुनिया भर में 90 लाख से अधिक लोगों की मौत हो रही है. अध्ययन से पता चला है कि दुनिया के अन्‍य देशों की तुलना में भारत में वायु प्रदूषण से अधिक लोगों की मौत होती है. इसके परिणामस्वरूप 2019 में भारत में 16.7 लाख मौतें हुईं जो उस साल दुनिया भर में इस कारण हुई मौतों का 17.8 प्रतिशत थी.

भारत में हर घंटे करीब 12 मौत
2016 की डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण से एक घंटे में करीब 12 मौतें होती हैं. बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण के कारण 2016 में पांच वर्ष से कम उम्र के 1,01,788 बच्चों की समय से पहले मृत्यु हो गई. घर के बाहर की हवा प्रदूषित होने से देश में हर घंटे लगभग सात बच्चे मर जाते हैं, और उनमें से आधे से अधिक लड़कियां हैं.

AQI बहुत खराब
भारत की औसत पार्टिकुलेट मैटर सांद्रता 2019 में 70.3 माइक्रोग्राम/क्यूबिक मीटर थी – जो दुनिया में सबसे अधिक है. मौजूदा वर्ष की बात करें तो शुक्रवार सुबह दिल्ली में ही वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 500 से अधिक हो गया – जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा स्वस्थ मानी जाने वाली सीमा से 100 गुना अधिक है.

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दिल्ली में रहने वाले लोगों की उम्र घटी
शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान द्वारा 2023 के लिए अगस्‍त में जारी वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (AQLI) रिपोर्ट से पता चला है कि वायु प्रदूषण से दिल्ली में रहने वाले लोगों की जीवन प्रत्‍याशा (Life Expectancy) 11.9 साल कम हो गई है. शोधकर्ताओं ने कहा कि PM2.5 भारत में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है.

हृदय रोगों (4.5 वर्ष) और बाल एवं मातृ कुपोषण (1.8 वर्ष) की तुलना में औसत भारतीय के जीवन में 5.3 वर्ष कम हो जाते हैं. आपको बता दें कि दिल्ली, दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में टॉप पर है.

क्या कहते हैं डॉक्टर?
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, साकेत में श्‍वसन तंत्र चिकित्‍सा विभाग के प्रधान निदेशक एवं प्रमुख डॉ. विवेक नांगिया ने लैंसेट अध्‍ययन के आंकड़ों का हवाला देते हुये बताया, ‘हमारे देश में, विशेषकर सिंधु-गंगा पट्टी में, वायु प्रदूषण के स्तर में वृद्धि के साथ मौतों की संख्या भी बढ़ रही है. यह वही है जो हम इन दिनों अनुभव कर रहे हैं’.

उधर, सर गंगा राम अस्पताल के बाल चिकित्सा विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. धीरेन गुप्ता वायु प्रदूषण को ‘धीमा जहर’ करार देते हुए कहते हैं कि यह अजन्मे, नवजात शिशुओं और सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करना शुरू कर देता है. वह कहते हैं कि वायु प्रदूषण के चलते जन्म के समय बच्चे का वजन कम होता है, बड़े होने पर एलर्जी हो सकती है.

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वायु प्रदूषण (Air Pollution) न केवल फेफड़े, बल्कि हृदय को भी प्रभावित करता है. वायरल संक्रमण और एलर्जी को अधिक घातक बनाता है. फेफड़ों को स्थायी क्षति होती है. यहां तक कि गैर-दमा रोगियों को भी बार-बार खांसी हो सकती है.

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