उल्लुओं का दीपावली कनेक्शन और करोड़ों की लगती बोली, हाई डिमांड पर वन विभाग अलर्ट!

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हाइलाइट्स

दीपावली पर उल्लुओं की बलि के मद्देनजर वन विभाग का इटावा में हाई अलर्ट.
इटावा जिला प्रभागीय वन अधिकारी अतुलकांत शुक्ला ने न्यूज 18 से बातचीत की.
सफेद और मटमैले रंग के उल्लुओं की बड़ी डिमांड, करोड़ों रुपये होती है कीमत.

इटावा. उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के बीहड़ों में बड़े पैमाने पर विभिन्न प्रजाति के उल्लू पाए जाते हैं जिनको पकड़ने के लिए तस्कर दीपावली से पहले व्यापक पैमाने पर सक्रिय हो जाते हैं. कई दफा तस्करों को उल्लुओं के साथ में गिरफ्तार भी किया जा चुका है. हालांकि कुछ वर्षों से यह सिलसिला वन विभाग की सक्रियता से रुका हुआ नजर आ रहा है. लेकिन, इटावा में दीपावली पर्व पर उल्लू पक्षी की बलि की आशंकाओं के मद्देनजर वन विभाग की ओर से हाई अलर्ट किया गया है.

इटावा जिला प्रभागीय वन अधिकारी अतुलकांत शुक्ला ने न्यूज 18 को एक विशेष भेंट में बताया कि वन विभाग की ओर से यह अलर्ट इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि इटावा के बीहड़ों में बड़े पैमाने पर उल्लू पाए जाते हैं और इसी दौरान तस्कर उल्लू पक्षी को पकड़ने के लिए सक्रिय हो जाते हैं. तस्कर उल्लू पक्षी को ना पकड़ सके इसलिए वन विभाग की ओर से विभागीय अधिकारियों कर्मियों को सक्रिय करने के साथ-साथ गुप्तचर को भी व्यापक सतर्क कर दिया गया है. उन्होंने बताया कि सभी वन क्षेत्राधिकारियों के साथ-साथ में वन वाचर और गुप्तचर को सख्त दिशा निर्देश देकर के तस्करों की गतिविधियों के मद्देनजर सक्रिय किया गया है.

पुजारी दिनेश तिवारी बताते हैं कि उनके पास कई ऐसे लोग आ चुके हैं जो सफेद और मटमैले रंग के उल्लुओं की मांग कर चुके हैं. इसके एवज में एक-एक करोड़ रुपए देने के लिए तैयार भी हुए हैं. इन रंग के उल्लुओं की मांग करने वाले ऐसा भी कहते रहे हैं कि अगर उनको उल्लू मिल जाएगा वह कई सौ करोड़ रुपये कमा सकते हैं. ऐसे में इटावा में पाए जाने वाले दुर्लभ उल्लुओं की जान पर दीपावली के करीब आते ही मुश्किलें आनीं शुरू हो जातीं हैं, क्योंकि तंत्र साधना से जुड़े लोग दीपावली पर इसकी बलि चढ़ाने की दिशा में सक्रिय हो जाते हैं. इस संबंध में चंबल सेंचुरी के कर्मियों को सतर्क कर दिया गया है, ताकि कोई भी शिकारी बलि चढ़ाने के लिहाज से उल्लुओं को पकड़ने मे कामयाब नहीं हो.

दरअसल, यह विडंबना ही है कि अधिक संपन्न होने के फेर मे कुछ लोग दुर्लभ प्रजाति के संरक्षित वन्यजीव उल्लुओं की बलि चढ़ाने की तैयारी मे जुट गए हैं. यह बलि सिर्फ दीपावली की रात को ही पूजा अर्चना के दौरान दी जाती है. इन लोगों का मानना है कि उल्लू की बलि देने वाले को बेहिसाब धन मिलता है. यही कारण है कि चंबल सेंचुरी के कर्मियों के अलावा मुखबिरों को भी सर्तक किया गया है जिनसे निजी तौर पर संपर्क करके रखा गया है. चंबल सेंचुरी में पर्थरा गांव के पास महुआसूडा नामक स्थान के अलावा गढायता गांव के पास चंबल नदी के किनारे देखे गये हैं.

बता दें कि उल्लू भारतीय वन्य जीव अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 के तहत संरक्षित है, यह विलुप्तप्राय जीवों की श्रेणी में दर्ज है. इनके शिकार या तस्करी करने वालों को कम से कम 3 वर्ष या उससे अधिक सजा का प्रावधान है. चंबल सेंचुरी क्षेत्र में यूरेशियन आउल अथवा ग्रेट होंड आउल और ब्राउन फिश आउल का शिकार प्रतिबंधित हैं. इसके अलावा भी कुछ ऐसी प्रजातियां हैं जिन पर प्रतिबंध है. सेंचुरी क्षेत्र में इनकी खासी संख्या हैं क्योंकि इस प्रजाति के उल्लू चंबल के किनारे करारों में घोंसला बनाकर रहते हैं इस प्रकार के करारों की सेचुंरी क्षेत्र में कमी नहीं है.

पूरी दुनिया में उल्लू की लगभग 225 प्रजातियां हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में चंबल के उल्लुओं की कई दुर्लभ प्रजातियों की जबरदस्त मांग है. यही वजह है कि चंबल के बीहड़ इलाकों में उल्लू तस्करों का निशाना बन रहे हैं और इन्हें तस्करी कर दिल्ली, मुंबई से लेकर जापान, अरब और यूरोपीय देशों में भेजे जाने की बातें कही जाती है. दीपावली पर्व से काफी पहले से ही तस्कर उल्लुओं की तलाश में चंबल का चक्कर लगा रहे हैं.

आमतौर पर आर्थिक रूप से सुदृढ़ लोग ही पूजा में उल्लुओं का प्रयोग करते हैं, क्योंकि इस प्रजाति के उल्लू आसानी से सुलभ न होने के कारण इसकी कीमत लाखों रुपए होती है. जानकारों की मानें तो दिल्ली एवं मुंबई जैसे महानगरों में बैठे बड़े-बड़े कारोबारी इन तस्करों के जरिए संरक्षित जीव की तस्करी में जुट गए हैं. इतना ही नहीं तंत्र विद्या से जुडे लोगों की मानें तो इस पक्षी के जरिए तमाम बड़े-बड़े काम कराने का माद्दा तांत्रिक प्रकिया से जुड़े लोग करने में सक्षम रहे हैं.

अगर बंगाल का ही हम जिक्र करें तो वहां पर बिना उल्लू के कोई भी तंत्र क्रिया नहीं की जाती है. इसके अलावा काला जादू में भी उल्लुओं का व्यापक प्रयोग किया जाता है. वन्य जीवों के संरक्षण के लिए काम कर रही चंबल घाटी से लगातार उल्लुओं की तस्करी के मामले उजागर हो रहे हैं, इसको लेकर सभी सतर्क हैं. तंत्र विद्या के अलावा इनका असल इस्तेमाल आयुर्वेदिक पद्धति में भी किया जाना बताया जाता है. यह वाइल्ड लाइफ अधिनियम के तहत प्रतिबंधित जीव है और इसका शिकार करना अथवा पकड़ना कानूनन अपराध है.

हालांकि, कई संस्कृतियों के लोकाचार में उल्लू को अशुभ माना जाता है, लेकिन साथ ही संपन्नता और बुद्धि का प्रतीक भी. यूनानी मान्यताओं में उल्लू का संबंध कला और कौशल की देवी एथेना से माना गया है और जापान में भी इसे देवताओं का संदेशवाहक समझा जाता है. वहीं, हिदू मान्यताओं के अनुसार, धन की देवी लक्ष्मी उल्लू पर विराजती हैं और भारत में यही मान्यता इस पक्षी की जान की दुश्मन बन गई है. यही वजह है कि दीपावली के ठीक पहले के कुछ महीनों में उल्लू की तस्करी काफी बढ़ जाती है. हर साल भारत के विभिन्न हिस्सों में दीपावली की पूर्व संध्या पर उल्लू की बलि चढ़ाने के सैंकड़ों मामले सामने आते हैं.

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