गंगा नन्दिनी त्रिपाठी
जब हम विदेश की धरती पर रह रहे एनआरआई, प्रवासी भारतीय और उनकी पीढ़ियों को देखते हैं तो उनमें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के बीच अंतर दिखता है. जनरेशन गैप देखने को मिलता है. जो पीढ़ी कभी भारत से विदेश के लिए निकली थी और वहीं बस गयी. फिर उन्होंने अपने बच्चों को वही बसा दिया, उनकी अगली पीढ़ी भी वही पर बस गयी. उनका जन्म विदेश में हुआ, इसलिये वो खुद को उस देश का ही मानते हैं लेकिन वास्तव में उनकी जड़ें तो भारतीय ही है, उस पीढ़ी की भारत व भारतीय संस्कृति को समझने की दृष्टि भिन्न है.

वे दुविधा में होते हैं क्योंकि वो अपने माता-पिता के दृष्टिकोण से ही भारतीय संस्कृति को देख पाते हैं. ऐसे में वे भारतीय संस्कृति को और हिन्दूधर्म को केवल रीतिरिवाजों के रूप में देख पाते हैं. जैसे विशेष अवसरों पर मन्दिर जाना. मंदिर जाने पर भारतीय पोशाक पहनना. वो भारतीय संस्कृति को रीतिरिवाज व परम्पराओं की दृष्टि से देखने लगते हैं.कई बार ये सब वर्तमान पीढ़ी को बंधन जैसा लगने लगता है. मसलन मंदिर जाते समय जूते-चप्पल नहीं पहनना, प्रसाद दाहिने हाथ से ही लेना, आरती को दोनों हाथों से लेना ऐसी कई बातें हैं जो उन्हें नियम की तरह लगती हैं. और ये नियम उन्हें आकर्षक नहीं लगते, इसलिये इससे उन्हें जुड़ाव नहीं होता, जिसके कारण भारतीयता को देखने का उनका दृष्टिकोण अलग हो जाता है.
विदेश में रह रहे प्रवासी भारतीय परिवारों के बच्चे भारतीयता को अपने जीवन में लाने के लिये अक्सर फिल्में, बाॅलीवुड और सिनेमा आदि माध्यमों का उपयोग करते हैं. तात्पर्य यह है कि वर्तमान पीढ़ी जो शायद ही कभी भारत आयी हो, वे अपने माता-पिता से ही हिन्दूधर्म व भारतीय संस्कृति के विषय में जान व समझ पाते हैं. माता-पिता पर्वों, त्यौहारों और विशेष अवसरों के माध्यम से ही उन्हें भारतीयता के दर्शन करा पाते हैं. युवा पीढ़ी सिनेमा, वर्तमान परिवेश और वर्तमान में प्रसिद्ध संस्कृति के माध्यम से और पारिवारिक स्तर पर दो अलग-अलग रूपों में वे भारतीय संस्कृति को देख पाती है.  ऐसे में उनके मन में दुविधा उत्पन्न होती है; तनाव बढ़ता है जिससे वे वास्तविकता, वैज्ञानिकता और आध्यात्मिकता से जुड़ नहीं पाते.

भारतीय मूल की वर्तमान पीढ़ी जो भारत में और भारत के बाहर विदेश की धरती पर रह रही है उन्हें भारतीय संस्कृति के वास्तविक स्वरूप के दर्शन कराने होंगे नहीं तो वे उन दिव्य मूल्यों को नहीं जान पायेंगे जो वास्तव में भारतीयता का मूल है. यह तो ऐसे ही होगा कि हमने केवल भारतीयता को शारीरिक तौर पर अपनाया परन्तु उसकी आत्मा को नहीं अपनाया.

गा नंदिनी का बचपन और युवावय अमेरका में बीता. पिता पूर्वी उत्तर प्रदेश से अमेरिका गए थे. भारत हमेशा उन्हें आकर्षित करता था, एक दिन वह हमेशा के लिए यहीं आ गईं. (courtesy ganga nandini)

भारतीयता को समझना है, भारतीयता को वास्तव में अपने बच्चों में देखना है तो उन्हें भारत के अध्यात्म से जोड़ना होगा. भारतीयता के वास्तविक स्वरूप से जोड़ना होगा. हम अपने बच्चों को भारतीय दर्शन व अध्यात्म से जोडे़गे तभी वे भारतीयता को वास्तव में समझ सकते हैं. यह उनके जीवन के लिये एक मूल्यवान उपलब्धि होगी.

हम सभी ने कोविड-19 के उस भयानक दौर को देखा. उस समय अनेक युवा मानसिक तनाव से जुझ रहे थे. उस दौरान हम सभी ने देखा कि भारत के जो आध्यात्मिक सूत्र हैं, मतलब आध्यात्मिक ज्ञान, आध्यात्मिक विद्या, योग, ध्यान, भक्ति, दर्शन, शास्त्र और आयुर्वेद- ये सब अमृत तुल्य और वरदान सरीखे हैं. यही वास्तव में भारतीय संस्कृति है जिसको वास्तविक स्वरूप में जानना समझना जरूरी है.

मैं खुद अमेरिका में पली बढ़ी, इसलिए मेरा सुझाव है कि आज की युवा पीढ़ी को जो विशेषकर विदेश की धरती पर रह रही है और ये वहां पर दूसरी या तीसरी पीढ़ी के तौर पर रह रही है, उसको अध्यात्म सजोड़ना होगा. भारत की ज्ञान, प्रज्ञा और दर्शन की अद्भुत परम्परा से जोड़ना होगा.

हम अपने बच्चों को विशेष कर विदेशों में रह रहे बच्चों को समझाएं कि इन पर्वो का वास्तविक महत्व क्या है. हम जो प्रतिदिन आरती करते हैं, उसका असली मतलब क्या है. आरती लोगों को साथ लाती है इसलिये आरती का क्रम शुरू किया गया. इन पद्धतियों का आध्यात्मिक व वैज्ञानिक महत्व है. आरती के पीछे जो वास्तविक महत्व है उससे बच्चों को जोड़ने की जरूरत है.

विगत माह जब मैं जर्मनी में थी तो वहां पर कीवा फेस्टिवल (विश्व के विभिन्न देशों के आदिवासी/जनजाति प्रमुख मिलकर अपनी परम्पराओं के साथ पूजा करते हैं) में जब हम कीवा में पूजा कर रहे थे, वहां पर दुनियाभर के जनजाति आदिवासी समुदाय के प्रमुख उपस्थित थे. सब अपनी-अपनी पूजा पद्धति एक-दूसरे के साथ साझा कर रहे थे. मुझे कीवा के दौरान भारतीय संस्कृति को साझा करने का अवसर प्राप्त हुआ. मैने कीवा में भारतीय नृत्य किया, उस समय उस वातावरण की जो ऊर्जा थी, उसे सभी ने अनुभव किया, उसकी प्रशंसा की. जब हम नृत्य के बाद भगवान शिव की आराधना कर कीवा से बाहर निकले तो वहां उपस्थित 400 से अधिक लोग मेरे साथ मिलकर ऊँ का उच्चारण करने लगे. सभी ने अनुभव किया कि जब मंत्र उच्चारण किया जाता है, ऊँ का जप किया जाता है तो अपार शान्ति मिलती है. मंत्र हमारी विरासत और धरोहर हैं, जो ऋषि परंपरा, गुरु परंपरा, हिमालय और गंगा जी से जोड़ती है.

अब भी मुझे कई लोगों के फोन आते हैं, वो कहते है कि आपने जब ऊँ का उच्चारण करवाया था उसकी स्मृतियां आज भी जीवन को जीवंत और जागृत बना देती हैं. ऊँ के उच्चारण से सुकून मिलता है, जुड़ाव महसूस होता है. हमारे मंत्रों की शक्ति अद्भुत है, जिनके उच्चारण मात्र से जीवन में नूतन ऊर्जा का संचार होता है. चाहे हमारी जीवन शैली जैसी भी हो, हम जहां भी रहते हो ये दिव्य मंत्र सभी को वहीं शान्ति और ऊर्जा प्रदान करते हैं. अर्थात् हमारी संस्कृति कभी भी किसी एक के लिये नहीं थी वह सभी के लिये है और शाश्वत है.

कुम्भ मेला, पर्व और त्यौहार हमारी विरासत हैं, जिसे संजोकर रखना होगा. इनका हमें उत्सव मनाना चाहिये, लोगों को आंमत्रित कर जोड़ना चाहिए. दुनिया में व्याप्त अनेक ऐसी पद्धतियां हैं तो विलुप्त हो रही है परन्तु भारतीय संस्कृति एक ऐसी संस्कृति है जो आज भी मजबूत रूप से खड़ी है और दूसरों को भी जोड़ रही है इसलिये जो भारतीय मूल से जुड़े हैं चाहे वे जहां पर भी हो, चाहे किसी भी पीढ़ी के हों, उनकी यह जिम्मेदारी है कि वे अपने कल्चर को समझे, जाने, दूसरों के साथ साझा करें. सांस्कृतिक राजदूत बनकर उसे बढ़ाएं. जिससे दूसरे लोग उनके जीवन को देखे तो जाने की भारतीय संस्कृति कितनी महान है. हमारे नृत्य, कला, रीतिरिवाजों पर जब आध्यात्मिक रंग चढ़ जाता है तब उसे कोई नहीं मिटा सकता. यही भारतीयता की पहचान है. भारतीयता, आकार नहीं बल्कि संस्कार है.

(गंगा नंदिनी 12 बरसों से परमार्थ निकेतन ऋषिकेश से सक्रिय तौर पर जुड़ी हुई हैं. वह  इससे संबंद्ध संस्था ग्लोबल इंटरफेथ वाश एलायंस की डायरेक्ट हैं)

Tags: America, Haridwar, Haridwar Ashram, Rishikesh, Spirituality

Source link

Target Tv
Author: Target Tv

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

इस पोस्ट से जुड़े हुए हैशटैग्स