शिमला. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से 26 किलमीटर दूर धामी क्षेत्र के हलोग गांव में पत्थरों का अनोखा मेला मनाया गया. दीपावली पर्व के एक दिन बाद मनाए जाने वाले इस ‘पत्थर मेले’ में दो दल एक दूसरे पर जमकर पत्थर बरसात हैं. सदियों से चली आ रही इस परंपरा का जुड़ाव धामी रियासत के राजपरिवार से है. स्थानीयों खूंदों यानि की टोलियां इस पत्थरबाजी में शामिल होती हैं. दोनों ओर से पत्थरों की बरसात तब तक बंद नहीं होती जब तक कि कोई लहूलुहान न हो जाए. इस पत्थरबाजी में जिस व्यक्ति का रक्त निकलता है, उससे मां भद्रकाली को रक्ततिलक किए जाने की परंपरा है. इस बार आधे घंटे से ज्यादा समय तक दोनों गुटों में जमकर पत्थर चले. इस दौरान जमोगी खूंद के गलोग गांव के 28 वर्षीय दिलीप ठाकुर को पत्थर लगा.
पत्थर की चोट से जैसे ही खून निकला वैसे ही पत्थरबाजी खत्म हुई. उसके बाद परंपराओं का निर्वहन किया गया और मेला समाप्त हो गया. चोटिल दिलीप को मंदिर ले जाया गया और उसके बाद उसे उपचार के लिए स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, वहां पर उसे प्राथमिक उपचार दिया गया.
धामी रियासत के राज परिवार के सदस्य जगदीप सिंह ने बताया कि परंपरा के अनुसार दीवाली के दूसरे दिन सबसे पहले राज दरबार स्थित नरसिंह देवता के मंदिर में विशेष पूजा की जाती है. पूजा-अर्चना के बाद ढोल-नगाड़ों के साथ जुलूस की शक्ल में शोभायात्रा निकाली गई. करीब 50 से 60 लोगों के साथ यह शोभायात्रा भद्रकाली के मंदिर पहुंचती है. इस बार भी यही परंपरा निभाई गई.
मां भद्रकाली के मंदिर में पूजा
मां भद्रकाली के मंदिर में पूजा की गई, उसके बाद खेल का चौरा में सती का शारड़ा स्मारक पर पहुंचने के बाद राज परिवार धामी के उत्तराधिकारी जगदीप सिंह ने खुंदों के साथ पूजा-अर्चना की. राज परिवार के सदस्य सबसे पहले पत्थर फेंक कर इस मेले की शुरूआत करते हैं. सबसे पहला पत्थर राज परिवार की ओर से मारा जाता है, उसके बाद दोनों ओर से तुरंत पत्थरों की बौछार शुरू होती है.
चोटिल दिलीप को मंदिर ले जाया गया और उसके बाद उसे उपचार के लिए स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, वहां पर उसे प्राथमिक उपचार दिया गया.
प्रजा को बचाने के लिए मानव बलि दी जाती थी
राज परिवार के वंशज जगदीप सिंह ने बताया कि धामी में पत्थर मेले की मान्यता सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है. इस पत्थर के खेल और उसमें पत्थर की चोट लगने के बाद भद्रकाली को मानव रक्त का तिलक करने की परंपरा के पीछे मान्यता है कि धामी में क्षेत्र में आई आपदाओं से प्रजा को बचाने के लिए मानव बलि दी जाती थी. उस समय इस क्षेत्र में सत्ती प्रथा भी थी. यहां कि एक रानी ने सती होते हुए इस परंपरा को समाप्त करवाया. मानव बलि के विकल्प के रूप में यहां पत्थर का खेल करवाने और उसमें रक्त निकलने पर भद्रकाली को तिलक करने की परंपरा को शुरू करवाया था. उसके बाद से धामी में दिवाली के दूसरे दिन पत्थर का खेल होता है.
सदियों से इस परंपरा का निर्वहन
राज परिवार की ओर से जठोती, कटेड़ू, दघोई और तूनन खूंद जबकि दूसरी ओर जठोती, जमोगी के खूंद होते हैं. कौन कौन से खूंद इस अनूठे खेल में हिस्सा लेंगे, ये राज परिवार ने ही तय किया है. इस मेले में भारी संख्या में लोग शामिल होते हैं. स्थानीय निवासी 71 वर्षीय कंवर कड़क सिंह ने बताया कि सदियों से इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है, जो भी इस मेले में शामिल होते हैं या पत्थरबाजी में हिस्सा लेते हैं वे खुशी से शामिल होते हैं. उन्होंने बताया कि आज तक कभी ये नहीं हुआ कि पत्थरबाजी में कोई बड़ा हादसा हुआ या किसी की जान गई. राज दरबार के पुरोहित देवेंद्र कुमार ने बताया कि ये प्राकृतिक प्रकोप या किसी आपदा से कोई नुकसान हो, इसलिए पारंपरिक तरीके से हर साल इस मेले का आयोजन होता है, सदियों पहले जिस विधि से पूजा होती है, उसी का निर्वहन आज भी किया जाता है.
नियमों को तोड़ रहे लोग
इस पत्थरबाजी में दिलीप के अलावा स्थानीय युवक आकाश ठाकुर को भी सर पर चोट लगी. अस्पताल में उपचार करने आए आकाश ने बताया कि ये परंपरा उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं. इसमें शामिल होने में आनंद आता है. दिलीप ठाकुर के ताऊ नरोतम ठाकुर ने कहा कि पिछले कुछ समय से इस खेल के कुछ नियम तोड़े जा रहे हैं, जिससे अधिक लोग चोटिल हो रहे हैं. कुछ को कई बार गंभीर चोट भी लगी है. उन्होंने कहा कि इस खेल में पत्थर मारने के नियम बने हुए हैं, जिससे किसी को ज्यादा नुकसान नहीं होता, उन नियमों को फिर से कड़ाई से लागू करना होगा.
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FIRST PUBLISHED : November 14, 2023, 06:37 IST