हाइलाइट्स
नेहरू को इजरायल के पक्ष में लाने के लिए तब मशहूर वैज्ञानिक आइंस्टीन ने खत लिखा था
बाद में नेहरू ने माना कि इजरायल एक सच है तो उन्होंने उसे मान्यता देने का काम किया
14 मई 1948 को जब इजरायल को आजादी मिली. फिर संयुक्त राष्ट्र संघ में इजरायल और फिलिस्तीन दो देश बनाने का प्रस्ताव पेश हुआ तो भारत ने इसके खिलाफ वोट दिया था. तब नेहरू फ़िलिस्तीन के बंटवारे के ख़िलाफ़ थे. इसी आधार पर भारत ने 1948 में संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के गठन के ख़िलाफ़ वोट किया था.
हालांकि फिर भारत ने 17 सितंबर, 1950 को आधिकारिक रूप से इजरायल को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता दी. हालांकि ऐसा करने के बाद भी भारत और इजरायल के बीच राजनयिक संबंध लंबे समय तक नहीं रहे. भारत ने 1992 में इजरायल के साथ राजनयिक संबंध बहाल किया. ये तब हुआ जब भारत में पीवी नरसिंहराव प्रधानमंत्री बने.
इस बारे में “आब्जर्बर रिसर्च फाउंडेशन” की वेबसाइट www.orfonline.org में पिनाक रंजन चक्रवर्ती के एक लेख “व्हेन आइंस्टीन ट्राइड टू कंवींस नेहरू टू सपोर्ट इजरायल..बट फेल्ड” (When Einstein tried to convince Nehru to support Israel… but failed) प्रकाशित किया है. जिसमें इस पूरे वाकये पर रोशनी डाली गई है. लेख कहता है कि तब मशहूर वैज्ञानिक आइंस्टीन ने नेहरू को पत्र लिखकर इस संबंध में आश्वस्त करने की कोशिश की थी लेकिन नेहरू पर इसका कोई असर नहीं पड़ा.
लेख के अनुसार, इजरायल का जन्म अरबों के तगड़े विरोध के बीच हुआ. ज्यूश एंजेंसी के हेड डेविड बेन गुरियन की अगुवाई में बना इजरायल तब अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच मान्यता के लिए संघर्ष कर रहा था. गुरियन उसके पहले प्रधानमंत्री बने थे.
तब भारत ने इजरायल बनने के विरोध में वोट दिया था
तब संयुक्त राष्ट्र में तर्क दिया गया कि फिलिस्तीनी अरबों के साथ यहूदी लोगों का भी देश होना चाहिए. भारत ने इसके खिलाफ वोट तो दिया लेकिन ज्यादा ज्यादा वोट इजरायल और फिलिस्तीन को दो अलग देश और स्वतंत्र देश बनाने के लिए पड़े. इस योजना के पक्ष में 33 वोट पड़े तो विपक्ष में 13 जबकि 10 देश वोटिंग से गैरहाजिर रहे.
क्या है बालफोर घोषणापत्र
अमेरिका ने बालफोर घोषणापत्र (1917) का समर्थन किया. आर्थर बालफोर ब्रिटेन के विदेश सचिव थे, जिन्होंने फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए एक अलग देश बनाने की जरूरत बताई थी. यह घोषणापत्र ब्रिटेन की तरफ़ से था जिसमें कहा गया था कि फ़लस्तीन में यहूदियों का नया देश बनेगा. इस घोषणापत्र का अमरीका ने भी समर्थन किया था. हालांकि अमरीकी राष्ट्रपति फ्रैंकलीन डी रुजवेल्ट ने 1945 में आश्वासन दिया था कि अमरीका अरबी लोगों और यहूदियों से परामर्श के बिना किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं करेगा.
आइंस्टीन ने नेहरू को क्या चिट्ठी लिखी थी
हालांकि भारत के रुख के बारे में कुछ भी गोपनीय नहीं था. उसी दौरान नेहरू को दुनिया के जाने-माने वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने चिट्ठी लिखी और ये अपील की कि भारत को इजरायल के पक्ष में वोट करना चाहिए. हालांकि आइंस्टीन की बात को भी नेहरू ने स्वीकार नहीं किया. आइंस्टीन खुद यहूदी थे. जर्मनी में यहूदियों के नरसंहार के बीच ही उन्होंने अमेरिका में जाकर शरण ली थी.
आइंस्टीन ने खारिज कर दिया था राष्ट्रपति बनना
आइंस्टीन को भी लगता था कि अगर यहूदियों के लिए कोई देश बनता है तो यहूदियों से जुड़ी संस्कृति, यातना सह रहे यहूदी शरणार्थी और दुनियाभर में बिखरे यहूदियों के बीच एक भरोसा जगेगा. हालांकि आइंस्टीन चाहते थे कि इजरायल में अरबी और यहूदी दोनों एक साथ रहें. इजरायल के पहले प्रधानमंत्री बेन गुरियन ने अल्बर्ट आइंस्टीन को इजरायल का राष्ट्रपति बनने का प्रस्ताव भी दिया था, जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया था.
नेहरू ने क्या जवाब दिया था
नेहरू फिलिस्तीन के बंटवारे को लेकर सहमत नहीं थे. उनका कहना था कि फिलिस्तीन में अरबी सदियों से रह रहे हैं. जब एक यहूदी देश बनेगा तो उन्हें बेदखल होना पड़ेगा जो कि उचित नहीं होगा. नेहरू ने आइंस्टीन की चिट्ठी के जवाब में यही कहा भी था.
आइंस्टीन की चिट्ठी में क्या था
आइंस्टीन ने नेहरू को 13 जून 1947 को चार पन्ने की एक चिट्ठी लिखी थी. इस ख़त में आइंस्टीन ने भारत में छुआछूत ख़त्म करने की तारीफ़ की थी. उन्होंने लिखा कि यहूदी भी दुनियाभर में भेदभाव और अत्याचार के शिकार हैं. उनका साथ देने की जरूरत है.
उन्होंने नेहरू को लिखे खत में कहा था, ”सदियों से यहूदी दरबदर जीवन जी रहे हैं. लाखों यहूदियों को तबाह कर दिया गया. दुनिया में कोई ऐसी जगह नहीं जहां वो ख़ुद को सुरक्षित महसूस कर सकें. एक सामाजिक और राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन के नेता के रूप में मैं आपसे अपील करता हूं कि आप यहूदियों के आंदोलन के साथ खड़े हों.”
नेहरू ने ये सवाल भी किया
तब नेहरू ने इस पत्र का जवाब दिया, ”मेरे मन में यहूदियों को लेकर पूरी तरह सहानुभूति है. लेकिन अरबों को लेकर भी सहानुभूति कम नहीं. मैं जानता हूं कि यहूदियों ने फिलिस्तीन में शानदार काम किया है. लोगों के जीवनस्तर को बेहतर बनाने में योगदान दिया है, लेकिन ये सवाल मुझे हमेशा परेशान करता है कि अरबों में यहूदियों के प्रति भरोसा क्यों नहीं बन पाया?”
फिर कब नेहरू ने इजरायल को मान्यता दी
संयुक्त राष्ट्र में इजरायल बनने के विरोध में वोट देने के बाद आखिरकार नेहरू ने 17 सितंबर 1950 में इजरायल को मान्यता दी. तब उन्होंने कहा कि इजरायल एक सच है. उन्होंने कहा कि तब इजरायल के पक्ष में वोट देने से इसलिए परहेज किया, क्योंकि अरब देश भारत के गहरे दोस्त थे. लेकिन नेहरू की अरब के प्रति नीति को गहरा झटका लगा जबकि 1965 और 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भारत को अरब देशों का साथ नहीं मिला बल्कि उन देशों ने पाकिस्तान का साथ दिया.1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो भी इजरायल ने मदद की पेशकश की थी लेकिन भारत की एक शर्त के चलते ऐसा नहीं हो सका था.
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FIRST PUBLISHED : November 14, 2023, 10:19 IST