हाइलाइट्स

नेहरू चाहते थे कि पढ़ने लिखने के बाद लोग धर्म के प्रति अपनी सोच को विकसित करें

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू मंदिरों में भी जाते थे. कुंभ में स्नान भी करते थे. उनका विवाह पूरे धार्मिक रीतिरिवाज से हुआ लेकिन इसके बाद भी धर्म को लेकर उनके अपने विचार थे, जिसे वो मानते थे, क्यों वह चाहते थे कि धर्म पर ज्यादा दिखावा नहीं होना चाहिए.

उनकी आत्मकथा और उन पर लिखी गई जीवनियों में जिस नेहरू की तस्वीर उभरती है, वह किसी भी तरह पुनर्जन्म, रहस्यमय स्वर्ग में कतई विश्वास नहीं करते थे. अपनी अंतिम वसीयत और वसीयतनामा में उन्होंने लिखा “…न ही मुझे मृत्यु के बाद के जीवन में बहुत दिलचस्पी है और ना ही मुझे लगता है कि मैं इन सब बातों में कोई दिलचस्पी लेता हूं.”

नहीं चाहते थे मृत्यु के बाद धार्मिक समारोह
उन्होंने ये भी लिखा, “मैं पूरी गंभीरता से यह घोषणा करना चाहता हूं कि मैं नहीं चाहता कि मेरी मृत्यु के बाद मेरे लिए कोई धार्मिक समारोह आयोजित किया जाए. मैं ऐसे समारोहों में विश्वास नहीं करता हूं, अगर ऐसा हुआ तो ये औपचारिक रूप से उनके प्रति ठीक नहीं होगा. खुद को और दूसरों को धोखा देने का प्रयास होगा.”

नेहरू एक धनी ब्राह्मण परिवार से थे. उन्होंने इंग्लैंड के हैरो स्कूल, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और लंदन के इनर टेम्पल में शिक्षा हासिल की. वहां कानून की पढ़ाई की. 1912 में जब नेहरू भारत लौटे तो वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के एक सक्रिय सदस्य के रूप में राजनीति में चले गए.

गांधी धार्मिक थे तो नेहरू…
वह गांधीजी के अनुयायी और करीबी सहयोगी बन गये. वह उनके घनिष्ठ सहयोगी थे लेकिन धार्मिक मान्यताओं को लेकर दोनों एकदम अलग थे. गांधीजी जहां अगाध तौर पर धार्मिक और भगवान में विश्वास करने वाले थे तो दूसरी ओर नेहरू ने धर्म को एक सीमा तक स्वीकार करते थे.

उन्होंने धर्म के बारे में लिखा था, “…यह वास्तविकता से अपनी आंखें बंद कर लेता है।” नेहरू का मानना ​​था कि उनके देश में ठहराव और प्रगति की कमी की जड़ धर्म है. उस समय भारतीय समाज का आधार पवित्र पुस्तकों, पुराने रीति-रिवाजों और पुरानी आदतों के अधिकार के प्रति बिना सोचे-समझे मानना था. उन्होंने मानते थे कि देश का धार्मिक दृष्टिकोण और धार्मिक वर्जनाएं भारत को आगे बढ़ने और आधुनिक परिस्थितियों के अनुकूल होने से रोक रही हैं.

उन्होंने आगे इस बारे में लिखा, “कोई भी देश या लोग जो हठधर्मिता और हठधर्मी मानसिकता के गुलाम हैं, वे प्रगति नहीं कर सकते हैं. दुर्भाग्य से हमारा देश और लोग असाधारण रूप से हठधर्मी और छोटी सोच वाले हो गए हैं.”

उन्हें इस बात की गहरी चिंता थी कि इतने सारे भारतीय लोग पढ़-लिख नहीं सकते और वे भारतीय समाज को अज्ञानता और धार्मिक परंपराओं द्वारा थोपी गई सीमाओं से मुक्त करने के लिए सामूहिक शिक्षा चाहते थे.

जवाहरलाल नेहरू धर्म पर अपने विचारों को लेकर बहुत मुखर थे. 1929 में लाहौर कांग्रेस में अपने अध्यक्षीय भाषण में, नेहरू ने स्वीकार किया कि यद्यपि वह जन्म से हिंदू हैं लेकिन उन्हें नहीं पता कि खुद को हिंदू कहना या हिंदुओं की ओर से बोलना कितना उचित है.

हालांकि तमिलनाडु के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने इसी साल अपने एक भाषण में कहा कि महात्मा गांधी ने अपनी पत्नी कस्तूरबा से कहा था कि नेहरू उपासक होने का दावा करने वाले कई लोगों की तुलना में भगवान के अधिक निकट थे. उन्होंने नई दिल्ली में प्रधान मंत्री की व्याख्यान श्रृंखला में दूसरा व्याख्यान देते हुए ये बात कही थी. उन्होंने इसी भाषण में आगे कहा, 1921-22 में प्रयागराज जेल से नेहरू द्वारा महात्मा गांधी को लिखे गए पत्रों से पता चलता है कि पूर्व प्रधानमंत्री धार्मिक ग्रंथों और विचारों के प्रति गहराई से आकर्षित थे.

Tags: Jawahar Lal Nehru, Jawaharlal Nehru, Jawaharlal Nehru’s birth anniversary, Pandit Jawaharlal Nehru, PM Nehru, Religion

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Author: Target Tv

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