जातीय आधार पर राजनीतिक दलों का टिकिट वितरण एक विवादास्पद मुद्दा ?
जातिय आधार पर टिकिट वितरण समाज के लिए विघटनकारी,लोकतंत्र को कमजोर करने कोशिश
योग्यता,बुद्धिमत्ता,कुशल नेतृत्व कर्ताओं नेपथ्य धकेलने की सोची समझी साजिश ?
Written by
Avnish tyagi, Bijnor
भारत में लोकसभा चुनाव एक बड़ी और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसमें राजनीतिक दलों का मुख्य ध्यान होता है। इस प्रक्रिया में उन्हें अपने उम्मीदवारों के लिए टिकिट वितरण करना होता है। जातीय आधार पर राजनीतिक दलों का टिकिट वितरण एक विवादास्पद मुद्दा है, क्योंकि जातियों के आधार पर यह प्रक्रिया समाज में विभाजन और विवाद पैदा कर सकती है।
जातीय आधार पर राजनीतिक दलों का टिकिट वितरण करने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। पहला और सबसे मुख्य कारण होता है जनसंख्या के आधार पर जातियों की धारारूप से मतदाताओं की आंतरिक गणना करना। राजनीतिक दलों को इसका ध्यान रखना होता है ताकि वे विजय प्राप्त करने के लिए उन मतदाताओं की समर्थन प्राप्त कर सकें।
दूसरा कारण हो सकता है किसी खास जाति की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का ध्यान रखकर उन्हें टिकिट देना। इससे वे उन्हें एक आर्थिक मजबूती संघान कर सकते हैं और उनके समर्थन को प्राप्त कर सकते हैं।
जातीय आधार पर टिकिट वितरण के मामले में राजनीतिक दलों को सावधानी बरतनी चाहिए। इस प्रक्रिया में न्याय और समानता का पालन करना चाहिए ताकि समाज में विभाजन न हो और समर्थन प्राप्त करने का मार्ग सही और उचित हो। राजनीतिक दलों को जनता के हित में सोचकर टिकट वितरण करना उनका नैतिक जिम्मेदारी बनती है,जिसे उन्हें स्वीकार करना चाहिए।