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ब्रह्ममुहूर्त में साधना क्यों जरूरी है?
ब्रह्ममुहुर्त की साधना :
इस विषय में शास्त्रों में अनेक प्रमाण दिये गये है। विहंगमयोग साहित्य मे भी प्रथमाचार्य जी, श्री वर्तमान स्वामीजी, श्री विज्ञानदेव महाराज जी, श्री सुखनंदन सिंह सदय जी अपने-अपने पुस्तक में अनेक प्रमाण दिये है, परन्तु आप सबको समझने के लिए बिल्कुल सरल, साधारण शब्दों में लिखकर समझाना चाहता हुँ।
रात्रि तीन बजे से किरण निकलने तक ब्राह्ममुहूर्त उषाकाल कहा जाता है। यह समय अमृत बेला के नाम से जाना जाता है। साधको को इस बेला मे मेधावी और दीर्घायु जीवन की इच्छा रखने वाले को इस समय प्रभु की शक्ति का संचय करना चाहिए। जीवन विकास के लिए, बुद्धि को विकसित करने के लिए ब्राह्ममुहर्त मे जाग कर गहन विषयो का मनन, अनुशीलन करना चाहिए। यह योगाभ्यासियों के लिए एव विधार्थियों के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण समय है।
सुबह 3:00 से 4:00 के समय शरीर, मन, इन्द्रियों मे स्वभाविक जागरण और स्पूर्ति बनी रहती है। परसुप्त शक्ति जागकर नया जीवन प्रकट करती है। नया उत्साह, उमंग इस अमृत बेला की वायु मे प्राप्त होता है। अतः तीन घड़ी रात शेष रहते, योग – साधको को जागकर प्रभु – सुमिरन, भजन, ध्यान और एकाग्रता, स्तवन, स्मरण, चितन मे लग जाना चाहिए।
“ब्रह्ममुहूर्त में साधना करने से साधको पर सद्गुरुदेव की विशेष कृपा क्यों होती है?
चौबीस घंटा में एकमात्र ब्राह्ममुहूर्त का ही समय है, जिस समय में उपद्रव, एव कोलाहल करने वाले सभी सांसारिजन,जीव-जन्तु सोये रहते है, ब्रह्माण्ड सीतल वायु देकर बिल्कुल शान्त रहता है। उस समय ब्रह्माण्ड में विचरण करने वाले देवी – देवता, पितर् , एवं जीवनमुक्त आत्माएं जगे रहते है। वे लोग शान्त वातावरण में ही विचरण करते है। और दर्शन भी इसी मुहूर्त में देते है।
दिनभर मनुष्य अपने दिनचर्या एवं कामकाज में व्यस्त रहने के कारण मन बुद्धि और शरीर थके रहते है। सूर्यास्त होते (शाम होते-होते) अनेक विचार दिमाग़ पर हावी रहते है। उस स्थिति में साधना करना बड़ा मुश्किल होता है। जब शरीर को गहरी नींद मिल जाती है, तब सुबह के बेला में सभी इन्द्रियां शान्त और तरोतजा रहती है। वातावरण भी शान्त रहता है। दोनों के तालमेल से साधना में बहुत सुगमता होती है। ऊपर से सद्गुरु कृपा बरसाए रखते है।
उस समय एक पल भी मन रुक जाय तो हजार गुना पुण्यफल प्रदान करता है। उस समय किये गये साधना, सत्संग, स्वध्याय व्यर्थ नहीं जाती है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो ब्राह्ममुहूर्त में विचार किया जाता है उसका सीधा असर शरीर एवं जीवन पर पड़ता है। यानी जैसा विचार उत्पन्न होगा वैसा जीवन का निर्माण होगा। जैसे सुबह की रोशनी से हरे पेड़-पौधा का विकास होता है, उसी तरह मनुष्य के हर अंग का विकास होता है।
शास्त्र में कहा गया है कि सुबह के समय देर तक सोना नहीं चाहिए। जो जो मनुष्य देर तक सोते हैं, उनका जीवन हमेशा क्लेश से भरा रहेगा। मन, बुद्धि में चिड़चिड़ापन रहेगा। शरीर भारी रहेगा। रोग का घर बनेगा। जीवन अल्प होगा और प्रभु-कृपा तो उसे मनुष्य कोसो दूर रहेगा। ऐसा जीवन आगे चलकर नर्क बन जाता है। और आत्मा की बहुत दुर्गति होती है।अतः ब्राह्ममुहूर्त में जागकर साधन साधना और भजन करना चाहिए और जीवन का आनन्द लेना चाहिए।