भागवत रूपी दंड का सहारा लेने वाले मनुष्य को,कभी अहंकार नहीं आ सकता
कलयुग केवल नाम आधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहीं पारा।
“नाम यानी परमपुरुष, सार शब्द निः अक्षर “
(नाम का मतलब भगवान राम से नहीं है ईश्वर परमात्मा से है ) रामायण में गोस्वामी तुलसीदास जी ने नाम की चर्चा की है ,भगवान राम को भी गुरु विश्वामित्र ने ब्रह्मविधा ( नाम) का उपदेश किया था । शास्त्रानुकूल शास्त्रों के अनुसार सन्त कोई भी योगी – भोगी हो, साधक चाहे सिद्ध हो जिसनें भी भगवान का आश्रय लेकर भगवत्त नाम रुपी दण्ड का आश्रय ले रखा है, उसके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं। जिसने भगवत्त रुपी दण्ड ( सद्गुरू का आभ्यंतर भेद साधन , ब्रह्मविधा विहंगम योग ) का आश्रय ले लिया है उसे काम – क्रोध रुपी कुत्ते नहीं काटते और अन्तः करण में अहँकार रूपी चोर भी नहीं घुसते। जिसने नाम रूपी दण्ड ले रखा है। उसको बुढ़ापे में पुत्र आदि का सहारा नहीं लेना पड़ता। भगवान यानी सद्गुरू देव उसके सिर पर हरदम हाथ रखे रहते हैं।
नामरुपी दण्ड को देखकर यमराज के दुत भी भाग जाते हैं। जिसनें सच्चे ह्रदय से भगवान का आश्रय लेकर जीवन व्यतीत करता है , वह संसार रुपी वृक्ष के ऊंचे से ऊंचे मुक्ति रूपी फल को तोड़़कर खा सकता है। यथा- नाम दण्ड जे धारते, वो ही पक्के दण्डी। बांस का दण्ड केवल धारते, वे सब है पाखण्डी।
मनुष्य को भगवान का नाम भजन के लिए हमेशा पांच बातें मुख्यरूप से याद रखनी चाहिए
-अपने आराध्यदेव यानी (सद्गुरू देव के व्यक्ति रूप का ध्यान ) के स्वरुप का ध्यान करते हुए नाम भजन करना है। क्योंकि परम पुरुष , चेतन मण्डल के दरबार में ये आराध्यदेव गवाही देते हैं। तात्पर्य यह है कि आप के मन कल्पित जितने आराध्यदेव हैं। उन सबसे भिन्न नाम , परम पुरुष , सार शब्द है है।
-भगवान के प्रति पूर्ण समर्पित होकर नाम भजन करना है।
-नाम भजन जिह्वा से जपने का विषय नहीं है। यह गुप्त जाप है। सद्गुरु से सिखकर मौन होकर नाम भजन करें।
नाम भजन कर आत्मा, गो मन अंग संवार। जाप नहीं अजपा नहीं, नि:अक्षर सुख सार।
– नाम भजन अहर्निश करना है। कभी भी भजन का तार नहीं टूटना चाहिए।
– नाम भजन आत्मा का विषय है। मन, बुद्धि, वाणी , इन्द्रियों का नहीं इसलिए अपने आत्म स्वरुप में स्थित होकर नाम भजन करें।
नाम वेद का भेद है, भेद रहित
भ्रमज्ञान। विद्या अविद्या बनी,
बिन सद्गुरु किमी जान।
इसलिए साधक को अपने सद्गुरु का नाम सदा याद करते रहना चाहिए। सतगुरु का नाम संसार रूपी बंधनों से मुक्ति का द्वार है
प्रस्तुती:ओमप्रकाश चौहान