चलो गांव की ओर
भारत में एक गांव ऐसा जहां बेटी के जन्म पर लगाए जाते हैं 111 पौधे
–राजस्थान के जिला राजसमंद का पिपलांत्री गांव
–रक्षाबंधन के त्योहार पर जहां बहनें पेड़ों को बांधती है राखियां
रिपोर्ट :ओम प्रकाश चौहान,
वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार, हलदौर (बिजनौर)
भारत गांव का देश है और भारत में विभिन्न राज्य (क्षेत्र ) अलग-अलग रीति-रिवाज प्रचलित है, ऐसा ही एक गांव राजस्थान के राजसमंद जिले में है जिसका नाम है पिपलांत्री निर्मल ग्राम पंचायत। इस गांव में जिस घर में भी बेटी का जन्म होता है उसकी खुशी में 111 पौधे लगाने का रीति रिवाज करीब डेढ़ दशक से चला आ रहा है। आज हम बताते हैं इस गांव की कहानी के बारे में इस गांव में रक्षाबंधन पर पर लड़कियां इन पेड़ों को राखी बांधती हैंI आज राजस्थान ही नहीं, देश के देश भर से इस गांव में राखी बांधने आती है। राजसमंद जिले की पहचान बनी निर्मल ग्राम पंचायत में अब गांव की बेटियां ही नहीं शहरों से भी पेड़ों को राखी बांधने बहनें पहुंचती हैं। रक्षाबंधन पर्व पर इस अनूठे आयोजन को देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचने लगे हैंI
उदयपुर संभाग के राजसमंद जिले का पिपलांत्री गांव की कहानी ही बेहद अजूबी है। पर्यावरण की रक्षा के लिए यहां की महिलाएं पिछले डेढ़ दशक से पेड़ों को राखी बांधती हैं। यही नहीं यहां जिस परिवार में बेटी पैदा होती है, वह परिवार 111 पौधे लगाता है।
राजसमंद जिले की पहचान बनी निर्मल ग्राम पंचायत में अब गांव की बेटियां ही नहीं, शहरों से भी पेड़ों को राखी बांधने बहनें पहुंचती हैं। रक्षाबंधन पर्व पर इस अनूठे आयोजन को देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचने लगे हैं।
बेटी के जन्म पर लगाते हैं 111 पेड़
पिपलांत्री गांव में रक्षाबंधन पर पेड़ों को राखी बांधने के साथ एक और खास बात जुड़ी है। लगभग ढाई हजार की आबादी वाले इस गांव में बेटी के जन्म पर परिवार के लोग 111 पौधे लगाते हैं। यह परम्परा डेढ़ दशक से चली आ रही है। पर्यावरण रक्षा की अनोखी मिसाल की शुरूआत यहां के तत्कालीन सरपंच श्यामसुंदर पालीवाल ने की थी। बेटी की मौत से टूटे पालीवाल ने उसकी याद में इसकी शुरूआत की और इससे अब पूरा गांव ही नहीं, बल्कि आसपास के गांव भी जुड़ चुके हैं। पालीवाल बताते हैं कि पिपलांत्री बेहद खूबसूरत था लेकिन मार्बल खनन क्षेत्र में बसे होने के चलते यहां की पहाड़ियां खोद दी गई। भूजल पाताल में चला गया और प्रकृति के नाम पर कुछ भी नहीं बचा।
पथरीला गांव अब हरियाली में बदला
डेढ़ दशक पहले पिपलांत्री गांव पथरीला था। संगमरमर की खदानों के चलते यहां पेड़ पौधों की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा था। जब से बेटियों की याद में यहां पौधे लगाने की शुरूआत हुई, तब से यहां की किस्मत ही बदल गई। अब यह क्षेत्र हरियाली से पूरी तरह आच्छादित हो चुका है। रक्षाबंधन पर पेड़ों की राखी बांधने की ही नहीं, बल्कि उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी यहां की महिलाएं रखती हैं। यहां लगाए गए पौधे अब तीस फीट ऊंचाई के हो चुके हैं। आज पिपलांत्री गांव कश्मीर की वादियों से कमतर नहीं।
विदेश में पढ़ाई जाती है इस गांव की कहानी
पिपलांत्री गांव की कहानी विदेशों में पढ़ाई जाती है। डेनमार्क सरकार के लिए यह गांव किसी अजूबे से कम नहीं है। इस गांव की कहानी डेनमार्क के स्कूलों में बच्चों को पढ़ाई जाती है। डेनमार्क से मास मीडिया यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स यहां स्टडी करने करने आते रहते हैं।
भारत की एक बहुत बड़ी आबादी गांव छोड़कर शहरों में जा रही है, क्योंकि गांवों में सुविधाएं नहीं हैं। लेकिन इसी देश में कई ऐसे गांव हैं जहां कोई एक बार पहुंच जाता है तो वहीं बस जाने की सोचता है। ऐसा ही एक आदर्श यानि मॉडल गांव राजस्थान में है। यहां की खूबियां आप गिनते रह जाएंगे। श्याम सुंदर पालीवाल पिछले दिनों कौन बनेगा करोड़पति के शो में भी नजर आए थे, अभिताभ बच्चन ने उनके प्रयासों की काफी सराहना की थी,
राजस्थान के राजसमंद जिले में है पिपलांत्री गांव, भारत के 6 लाख ज्यादा गांवों के लिए उदाहरण हैं
इस गांव का नाम पिपलांत्री हैं। करीब 2 हजार से ज्यादा आबादी वाले ग्राम पंचायत की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे मॉडल बनाने में किसी सरकार या एजेंसी का हाथ नहीं बल्कि यहां के ग्रामीणों का है। कुछ साल पहले तक यह गांव भी उजाड़ था, पानी पाताल में चला गया था और खदानों की उड़ती धूल से लोगों का जीना मुहाल हो गया था। लेकिन अब दूर-दूर तक पेड़ हैं। हरियाली इतनी कि आसमान से इसरो की टीम को यह इलाका अलग ही नजर आया था। पानी भी लोगों की पहुंच में है। सबसे बड़ी बात ही हर दिन यहां भारत के किसी न किसी कोने से कोई पर्टयक, शोधकर्ता, ग्रामीण चला आता है। इतना ही नहीं कई विदेशी भी यहां डेरा डाले नजर आते हैं।
इस गांव में पिछले तीन महीने से अपनी एक डॉक्युमेंट्री फिल्म की शूटिंग कर रही अर्जेटीना की सोफिया बताती हैं,”मैं ये जानने को बहुत उत्सुक हूं कि कैसे इस गांव की महिलाओं की स्थिति इतनी बदल गई और कैसे यहां के लोग पेड़-पौधों को बचाकर पर्यावरण संरक्षण में जुटे हैं।’ सोफिया अपने कुछ स्टूडेंट साथियों के साथ यहां तीन साल पहले पहली बार आईं थी, मुस्कुराते हुए सोफिया कहती हैं, “मुझे इस गांव से प्यार हो गया है।” सोफिया की तरह दर्जनों विदेशी लोग यहां हर महीने आते हैं। कुछ तो कई-कई महीने रुककर यहां हुए बदलाव को समझते हैं। गांव वाले भी अपने गांव की तरक्की से काफी खुश हैं।
“हमारे गांव के लोग इतने जागरुक हैं कि यहां बेटी के जन्म होने पर 111 पेड़ लगाएं जाते हैं और फिर वही बेटियां इन पेड़ों को भाई बनाकर राखी बांधती हैं, उन्हें बड़ा करती हैं। इससे पर्यावरण सुरक्षित हो रहा है, हमारे गांव की एक पहचान ये भी है कि पिपलांत्री की लड़कियां लड़कों से आगे हैं।” बीए में पढ़ने वाली मोनिका पालीवाल बताती हैं। मोनिका बिल्कुल वैसे ही इस गांव में रहती हैं जैसे शहरों और कस्बों में लोगों का रहन-सहन होता है। उनके मुताबिक शहरों जैसी सुविधाएं सब उनके गांव में हैं।
लेकिन पिपलांत्री की तस्वीर हमेशा से ऐसी नहीं थी। राजस्थान के हजारों गांवों की तरह यहां भी हालात बदतर थे। राजस्थान में उदयपुर से करीब 75 किलोमीटर आगे राजसमंद जिला पड़ता है। ये इलाका पूरी दुनिया में संगमरमर के लिए जाना जाता है। हाईवे के दोनों तरफ संगमरमर के बड़े-बड़े शोरुम हैं तो खदानों से आते पत्थरों से भरे ट्रक आपको 24 घंटे नजर आएंगे। आपके किचन और ऑफिस दफ्तर में संभव है राजसमंद के संगमरमर का कोई टुकड़ा जरुर लगा हो। अरबों रुपए की संगमरमर इंडस्ट्री से राजस्थान को करोड़ों रुपए का राजस्व मिलता है, लेकिन यही खनन इन गांवों के लिए मुसीबत बनता जा रहा है।

खनिज संपदा वाले दूसरे राज्यों की तरह अंधाधुंध खनन के चलते इस गांव की स्थिति बदतर हो गई थी। हरियाली गायब हो गई थी और लोग रोजगार की तलाश में शहरों की तरफ जा रहे थे। लेकिन साल 2005 में पंचायत के चुनाव में जीतकर नए-नए सरपंच बने श्याम सुंदर पालीवाल ने यहां की तस्वीर बदल दी। उन्होंने जो सबसे पहला काम किया वो था गांव की हजारों एकड़ सरकारी जमीन को कब्जे से मुक्त करना और उस पर पेड़ लगवाना। इसके लिए उन्होंने पिपलंत्री जलग्रहण समिति बनाई।
समिति के सचिव और सुंदरलाल पालीवाल के सहयोगी भंवर सिंह सिसौदिया गांव कनेक्शन को बताते हैं, “खनन के चलते ये गांव लगभग मर गया था, जंगल नष्ट हो गया था, पानी खत्म हो गया था। आसपास की जो संगमरमर की खदानें थी वो 500-800 फीट गहरी चली गई थीं, पानी के अभाव में खेती खत्म हो गई। पालीवाल जी के सरपंच बनने के बाद सरकारी जमीन से कब्जा छुड़वाया गया, खदानों के आसपास बाउंड्री बनी और खूब पेड़ लगाए गए।”
भंवर सिंह आगे कहते हैं, पेड़ लगाना भी बड़ी बात नहीं थी बड़ी बात थी कि उन्हें बचाकर रखना और हर ग्रामीण को लगे ये पेड़ उसके हैं, इसलिए पेड़ को बेटियों से जोड़ दिया गया। कुछ हरियाली बढ़ी तो गांव के लोग भी मुहिम में साथ हो लिए अब किसी बेटी के जन्म होने पर यहां 111 पेड़ लगाए जाते हैं और किसी भी व्यक्ति की मौत होने पर 11 पेड़ रोपे जाते हैं।”
शहरों जैसी हैं यहां सुविधाएं
राजसमंद जिले में करीब 200 से ज्यादा संगमरमर की खदाने हैं पिपलांत्री में अब तक करीब 4 लाख पेड़ लगाए जा चुके हैं, ग्रामीण भंवर सिंह की मानें तो जो पानी कभी 800 फीट पर पहुंच गया था वो 40–50 फीट पर आ गया है। हरियाली बढ़ने से जंगली जानवर लौट आए हैं। इसके लिए गांव में छोटे-मोटे करीब सैकड़ों बांध बनाए गए हैं। ताकि बारिश के पानी को जहां-तहां रोककर ग्राउंट वाटर को रिचार्ज किया जा सके। श्यामसुंदर पालीवाल अब सरपंच नहीं है। लेकिन भारत के कई राज्यों के ग्राम प्रधान और सरपंच उनसे सीखने आते हैं कि कैसे अपने बल पर अपने गांव का विकास किया जाए। कैसे सरकारी संसाधनों का उपयोग समाज की बेहतरी के लिए किया जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत, अभिनेता अक्षय कुमार समेत कई बड़ी-बड़ी हस्तियां पिपलांत्री ग्राम पंचायत एवं गांव के पहले रहे प्रधान श्याम सुंदर पालीवाल की सराहना कर चुके हैं। श्याम सुंदर पालीवाल को जल, जमीन और जंगल और बेटियां बचाने के लिए उन्हें कई सम्मान भी मिल चुके हैं।
सबसे बड़ा बदलाव महिलाओं की स्थिति में आया
जो महिलाएं कभी घूंघट में रहती थी, अब पंचायत में जाती हैं। विदेशियों से टूटी-फूटी ही सही, लेकिन अंग्रेजी में बात करती हैं। अपने गांव पर गर्व करती हैं। गांव निवासी कला (40 वर्ष) बताती हैं, “घर से बाहर निकलता तो दूर हम ज्यादातर वक्त घूंघट में रहते थे, लेकिन 2005 से पहले मैने कभी मतदान नहीं किया था। लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं।’ जब हमने महिला से बात की तो उन्होंने बताया कि पिपलांत्री अब बहुत बदल गया है, अब तो लोग हमारे जैसा बनना चाहते हैं। हम सब लोग भी कोशिश करते हैं कि गांव की छवि ऐसी ही बनी रही।’
बदलाव और तरक्की गांव के हर छोर पर नजर आती है
गांव के लगभग सभी घर पक्के, नालियां पक्की और हर घर में शौचालय है। गांव की हर सड़क पर पेड़ लगे हैं। गांव का सरपंच बदल गया है लेकिन योजनाएं और तरक्की अपनी रफ्तार में हैं। ग्राम पंचायत कार्यालय में एक सरकारी कर्मचारी बैठता है जो ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं को मिलने वाली दिक्कतों को दूर करता है। गांव के लोगों को गांव में ही रोजगार देने के लिए भी प्रयास किए गए हैं। पिपलांत्री के अपने एलोवेरा उत्पाद हैं। जिन्हें गांव की महिलाएं ही उगाती हैं और वही इसे प्रोसेज कर उत्पाद बनाती हैं।
श्याम सुंदर पालीवाल अक्सर लोगों से कहते हैं, सरकार की तमाम कल्याणकारी योजनाएं हैं। सरकारी मशीनरी है, सरकार का पैसा है, सरकार की ही जमीनें हैं। मैने अपनी तरफ से कुछ नहीं किया। सिर्फ सरकारी योजनाओं को सही तरीके से लागू कराया और सरकारी बजट का सही इस्तेमाल किया है। जो भी ग्राम पंयायतें या सरपंच ऐसा कर रहे हैं उनके भी गांव पिपलांत्री की तरह खुशहाल हैं।”