निखिल स्वामी/बीकानेर. बीकानेर का इतिहास काफी अनूठा और काफी समृद्ध है. यहां की गंगा जमुनी तहजीब पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. इस शहर की सांस्कृतिक विरासत को लोग आज भी संभाले हुए है. ऐसे में यह शहर अपनेआप में काफी अलग है. दीवाली के अवसर पर यहां साल में एक बार एक ऐसा अनूठा आयोजन होता है जिससे इस शहर में गंगा जमुनी की तहजीब झलकती है. हम बात कर रहे है बीकानेर में दीवाली पर होने वाले रामायण का उर्दू में वाचन यानी उर्दू में लिखी रामायण पढ़ी जाती है. इस उर्दू में लिखी रामायण का वाचन मुस्लिम समाज के लोग करते है. वे यह काम पिछले 25 से 30 सालों से करते आ रहे है और आज भी निरंतर जारी है. इस कार्यक्रम में मुस्लिम और हिंदू समाज के सभी लोग शामिल होते है.
उर्दू में लिखी रामायण का वाचन करने वाले जाकिर अदीब ने बताया कि यह परंपरा करीब 25 से 30 सालों से चली आ रही है. एडवोकेट उपध्यान चंद्र कोचर की प्रेरणा से यह कार्यक्रम शुरू किया गया था. जो आज तक निरंतर जारी है. यह कार्यक्रम पर्यटन लेखक संघ और महफिल-ए-अदब संस्था करती है. इस आयोजन के दौरान उर्दू में लिखी इस रामायण का पाठ किया जाता है. उस जमाने में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने इसे आठवीं के कोर्स में शामिल किया था.
1935 में लिखी गई थी ये रामायण
वे बताते है कि इस रामायण को वर्ष 1935 में उर्दू के शायर लखनऊ के मौलवी बादशाह हुसैन राणा लखनवी ने बीकानेर में लिखी थी. उस समय यहां पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की ओर से अपनी मातृभाषा में कविता के रूप में रामायण लिखने की एक प्रतियोगिता आयोजित हुई थी. उस समय मौलवी राणा बीकानेर रियासत के महाराजा गंगासिंह के यहां उर्दू-फारसी के फरमान अनुवाद किया करते थे.
33 पन्नो पर आधारित है यह रामायण
इस रामायण को उर्दू में छंद में लिखी सबसे अच्छी रामायण माना जाता है. इस सबसे संक्षिप्त में लिखा हुआ है. 33 पन्नो पर आधारित यह रामायण है. यह सिर्फ नौ पृष्ठों की है और इसमें 27 छंद है. हर छंद में छह-छह लाइनें हैं. कहा जाता है कि मौलवी राणा ने अपने कश्मीरी पंडित मित्र से रामायण के किस्से सुने थे. इसके आधार पर उन्होंने इस रामायण की रचना की. इससे पहले मौलवी ने रामायण नहीं सुनी थी. बाद में इस रामायण को प्रतियोगिता में भेजा गया, जहां इसे सबसे अच्छी रामायण मानते हुए गोल्ड मेडल से नवाजा गया.
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FIRST PUBLISHED : November 9, 2023, 12:39 IST
