‘आर्ट ऑफ हैबिट्स’ के लेखक और आध्यात्मिक गुरु गौरांग दास एक मोटिवेशनल कोच भी हैं. उन्होंने आईआईटी बॉम्बे से अपनी पढ़ाई की और सन्यास को अपना लिया. दास इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस (जिसे हम ‘इस्कॉन’ के नाम से जानते हैं) के गवर्निंग बॉडी कमीशन के सदस्य होने के साथ-साथ विश्व भर में मंदिरों और समुदायों की नेतृत्व प्रभावकारिता और उसके प्रशासन को बढ़ावा देने के काम में लगे हुए हैं. दास ने समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया है.

दास को छत्तीस से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं, जिसमें 2017 का यूएन वर्ल्ड टूरिज्म ऑर्गेनाइज़ेशन अवॉर्ड भी शामिल है. उन्होंने जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में टिकाऊ विकास लक्ष्यों के लिए जीईवी के बहुमुखी समाधानों की रणनीति भी बनाई और पूरी शिद्दत से उसका क्रियान्वयन भी किया है.

यह सच है कि मनुष्य में अच्छी आदतों का विकास करना बहुत मुश्किल काम है, लेकिन गौरांग दास ने अपनी हालिया प्रकाशित पुस्तक ‘आर्ट ऑफ हैबिट्स’ में किस्सागोई के माध्यम से सरल भाषा में अच्छी आदतों को विकसित करना और ज़िंदगी की चुनौतियों से डील करना सिखाया है. यह एक ऐसी किताब जिसकी घटनाएं पुस्तक पढ़ने बाद भी लंबे समय तक दिमाग में बनी रहती हैं. शब्द दृश्य बनाते चलते हैं. बहुत ज़रूरी है कि आज के समय में ऐसी पुस्तक उस हर व्यक्ति तक पहुंचे जो अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल दोनों तरह की ज़िंदगियों में बेस्ट या बेहतर की उम्मीद रखता है.

एक तरह से देखा जाए, तो कोविड महामारी ने दुनियाभर में ऐसी उथल-पुथल मचाई कि आधुनिक समय को लोग कोविड पूर्व और कोविड बाद का कालखंड कहने लगे हैं. जब पूरी दुनिया इस नई व्यवस्था को अपना रही है, तो जीवन में अच्छी और पक्की आदतों का निर्माण पहले से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है. गौरांग दास की पुस्तक ‘द आर्ट ऑफ हैबिट्स’ इसी बात को ध्यान में रखकर लिखी गई है. पुस्तक में भगवत गीता, रामायण और चैतन्य चरितामृत जैसे ग्रंथों से उद्धरण शामिल किए गए हैं, जिनसे पाठकों को ढेर सारा व्यावहारिक ज्ञान मिलता है.

‘पेंगुइन स्वदेश’ से प्रकाशित इस पुस्तक के बारे में सोशल मीडिया उद्यमी, मोटिवेशनल कोच और यूट्यूबर रणवीर अलाहाबादिया कहते हैं, “गौरांग दास प्रभु मेरे आध्यात्मिक गुरु रहे हैं. दुनिया में उनके जैसे बहुत कम व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने शास्त्रों के अध्ययन में इतना समय और ध्यान लगाया है. उससे भी कम वैसे लोग हैं जो उन शास्त्रों में वर्णित गूढ़ ज्ञान को सरल तरीके से लोगों के सामने प्रस्तुत कर सकें. मेरा हमेशा से विश्वास रहा है कि प्रभुजी का उद्देश्य भगवान कृष्ण की अविकल शिक्षाओं को आधुनिक समय में आम लोगों तक पहुंचाना है. अगर आप प्राचीन ज्ञान की तलाश में लगे हुए हैं तो उनकी लिखी कोई भी किताब अवश्य ही आपको पढ़नी चाहिए. इस पुस्तक में उन योद्धाओं के लिए ज़रूरी पठन सामग्री है, जो एक योद्धा की मानसिकता से जीवन की अनिश्चितताओं के बीच अनवरत यात्रा कर रहे हैं.”

वहीं मशहूर गायक और संगीतकार कैलाश खेर का कहना है, कि “एक गायक के लिए रियाज़ का अत्यधिक महत्व है. कोई कितना भी बड़ा गायक क्यों न हो, इसके लिए रियाज़ की आदत विकसित करनी ही होती है. अच्छी आदतें विकसित करना आसान काम नहीं है. लेकिन गौरांग दासजी जैसे विद्वान ने सरल भाषा में अपनी सशक्त किस्सागोई के माध्यम से हम पाठकों को वो तरीका समझाया है, ताकि हम सिर्फ इसे पढ़कर संतोष धारण न करें बल्कि इसकी सीखों को भी अपने जीवन में धारण करें.”

साथ ही इस पुस्तक के बारे में सफलता.कॉम के सीईओ हिमांशु गौतम का कहना है कि “यह प्रभुजी की एक प्रसन्नता प्रदान करने वाली पुस्तक है, एक मानसिक शीतलता प्रदान करने वाला पाठ; एक ऐसी किताब जिसमें ऐसी कहानियों और ऐसे दृष्टांतों का वर्णन है जो पुस्तक पढ़ने के बाद लंबे समय तक दिमाग में बने रहते हैं. इसके कथानक वास्तविक हैं, विश्वसनीय हैं और आज के जीवन की जटिल समस्याओं को सरल दृष्टि और आकर्षक तरीके से प्रस्तुत करते हैं. बिना उपदेशात्मक हुए भी वे युगों पुराने संचित अनुभवों के आधार पर हमारे समय के अनुकूल ठोस समाधान करते हैं.

प्रस्तुत हैं पुस्तक से वो अंश जो मनुष्य की सबसे बड़ी सुरक्षा से जुड़े हुए हैं-

मानव के रूप में हम लोग अपने शरीर की इंद्रियों द्वारा सीमित हैं. लोग अपने शरीर तथा इंद्रियों से स्वयं को इतना अधिक जोड़कर देखते हैं कि अनुभव के इस छोटे से दायरे से बाहर निकलकर सोचना लगभग असंभव हो जाता है. इंद्रियां केवल उन चीजों को देखने में सक्षम हैं, जो स्थूल पदार्थ के दायरे में स्थित हैं. वैदिक चिंतन के अनुसार सभी लोगों में चार प्रकार के दोष होते हैं-

1) भ्रम: हम भ्रम के अधीन हैं. इसका मतलब यह है कि कोई एक चीज़ को दूसरी चीज़ के रूप में देख सकता है. इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण वह है जो रस्सी के एक टुकड़े को जमीन पर पड़ा देखता है और गलती से उसे सांप समझ लेता है. इस भ्रम का विस्तार हमारे स्वयं तक है. हम अपनी पहचान को लेकर भ्रम में हैं. हम अपनी आध्यात्मिक स्थिति को भूल चुके हैं और इस अस्थायी शरीर के साथ अपनी पहचान बनाने लगे हैं.

2) प्रमादः हमारे अंदर गलतियां करने की प्रवृत्ति है. प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी तरह की लापरवाही या असावधानी से उत्पन्न होने वाली गलतियां करता है. जब हम किसी विशेष कार्य पर केंद्रित नहीं होते हैं तो हम गलतियां करते हैं.

3) विप्रलिप्सा: हमारे अंदर धोखा देने की इच्छा मौजूद होती है. जब किसी का शोषण करने या किसी दूसरे से सच्चाई छिपाने से किसी को लाभ पहुंचता है तब यह इच्छा पैदा होती है.

4) करणपत्व: हमारे पास अपूर्ण इंद्रियां हैं. हमारी प्रत्येक इंद्रिय सीमित है. प्रत्येक इंद्रिय एक कार्य तक सीमित है (हमारी आंखें केवल देख सकती हैं. हमारे कान केवल सुन सकते हैं, आदि) यहां तक कि जिस विशेष कार्य को करने के लिए उन्हें बनाया गया है, उसकी सीमा के भीतर भी वे दोषपूर्ण हैं. विभिन्न परिस्थितियों (अपर्याप्त प्रकाश या दर्शक से वस्तु की दूरी) में हमारी इंद्रियों की क्षमता बहुत क्षीण होती है. आदर्श परिस्थितियों में भी ये इन्द्रियाँ अपूर्ण जानकारी प्रदान कर सकती हैं.

पुस्तक : द आर्ट ऑफ हैबिट्स (नॉन-फिक्शन/ आध्यात्म)
लेखक : गौरांग दास
अनुवादक : कुमारी रोहिणी
प्रकाशक : पेंगुइन स्वदेश
मूल्य : 250 रुपए

Tags: Book, Hindi Literature, Hindi Writer, Literature, Motivational Story

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Author: Target Tv

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