मुहम्मद गौरी को 17 बार हराने वाले सम्राट पृथ्वीराज चौहान की वीरता की अद्भुत कहानी

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वीर शिरोमणि पृथ्वीराज चौहान जयंती पर विशेष आलेख

मुहम्मद गौरी को 17 बार हराने वाले सम्राट पृथ्वीराज चौहान की वीरता की अद्भुत कहानी

सम्राट पृथ्वीराज चौहान की वीरता बन चुकी है कई फिल्में
बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार भी बन चुके हैं फिल्म
-‘पृथ्वीराज’ पिछले वर्ष हो चुकी है रिलीज

आलेख :ओमप्रकाश चौहान

वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार, हल्दौर ( बिजनौर)

भारत में अनेक वीर शासक पैदा हुए हैं उनमें से एक वीर शिरोमणि पृथ्वीराज चौहान भी हुए हैं जिन्होंने बिन आंखों के अपने दुश्मन मोहम्मद गौरी को 17 बार माफ करने के बाद 18 बार उसको उसकी गद्दारी का इनाम दिया और उसके ही दरबार में अपने शब्दभेदी बाण से एक ही बार में उसको गिराया था। आज उनकी जयंती पर हम आपको सम्राट पृथ्वीराज चौहान की यशगाथा (वीरता) बारे में बताने जा रहे हैं। आपको जानकर हैरानी होगी आंख नहीं होने के बाद भी सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी को मार गिराया था।

13 वर्ष की अल्प आयु में संभाली राजगढ़ सिंहासन की जिम्मेदारी

सम्राट पृथ्वीराज चौहान वंश के हिंदू क्षत्रिय राजा थे। उत्तर भारत में 12 वीं सदी के उत्तरार्ध में उन्होंने अजमेर और दिल्ली पर राज किया था। सम्राट पृथ्वीराज चौहान का जन्म साल 1166 में अजमेर के राजा सोमेश्वप चौहान के घर हुआ था। गुजरात में जन्में सम्राट पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही प्रतिभा दिखाई देती थी। दिल्ली के राजा अनंगपाल द्वितीय की इकलौती बेटी कर्पूरी देवी पृथ्वीराज चौहान की मां थीं। पिता की मृत्यु के बाद 13 साल की उम्र में ही उन्होंने अजमेर के राजगढ़ की गद्दी संभाल ली।

बचपन में ही कुशल योद्धा रहे सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने युद्ध के कई गुण सीख थे। बाल्य काल में ही उनके अंदर योद्धा बनने के सभी गुण आ गए थे। दिल्ली के शासक और पृथ्वीराज चौहान के दादा अंगम ने पृथ्वीराज चौहान के साहस और बहादुरी की कहानियां सुनी तो बहुत प्रभावित हुए। इसके बाद उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली के सिंहासन का उत्तराधिकारी बनाने का एलान कर दिया। पृथ्वीराज की एक कहानी प्रचलित है कि वह इतने शक्तिशाली थे कि एक बार बिना किसी हथियार के शेर को मार दिया था

दिल्ली राज सिंहासन की गद्दी संभालने के बाद पृथ्वीराज चौहान ने किला राय पिथौरा को बनवाया था। उन्होंने सिर्फ 13 साल की उम्र में ही गुजरात के पराक्रमी शासक भीमदेव को युद्ध में हरा दिया था। पृथ्वीराज चौहान छह भाषाएं जानते थे जिनमें संस्कृत, प्राकृत, मागधी, पैशाची, शौरसेनी और अपभ्रंश भाषा शामिल है। इसके साथ ही उनको मीमांसा, वेदान्त, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र का भी ज्ञान था।

पृथ्वीराज चौहान की सेना बल की संख्या
पृथ्वीराज चौहान की तरह ही उनकी सेना भी बलवान थी। इतिहासकारों के मुताबिक, 300 हाथी तथा 3,00,000 सैनिक पृथ्वीराज की सेना में शामिल थे। इनमें बड़ी संख्या में घुड़सवार भी शामिल थे। भारतीय इतिहास के सबसे प्रसिद्ध हिन्दू राजपूत राजाओं में से एक पृथ्वीराज चौहान का राज्य राजस्थान और हरियाणा तक फैला था। साहसी और युद्ध कला में निपुण सम्राट पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही तीर कमान और तलवारबाजी पसंद करते थे।

पृथ्वीराज चौहान को कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी संयोगिता से प्रेम हो गया था। इसके बाद वह संयोगिता को स्वयंवर से ही उठा ले गए और गन्धर्व विवाह किया। हालांकि संयोगिता के पिता राजा जयचंद और पृथ्वीराज चौहान की आपस में नहीं बनती थी। शादी के लिए जयचंद राजी नहीं थे। संयोगिता को उठा ले जाने के बाद जयचंद ने पृथ्वीराज से दुश्मनी मान ली।
चंदबरदाई और पृथ्वीराज चौहान बचपन के दोस्त थे। इसके बाद चंदबरदाई एक कवि और लेखक बने थे। उन्होंने महाकाव्य पृथ्वीराज रासो लिखा है। प्रथम युद्ध में सन 1191 में मुस्लिम शासक सुल्तान मुहम्मद शहाबुद्दीन गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को कई बार हराना चाहा, लेकिन उसको सफलता नहीं मिली। पृथ्वीराज चौहान ने युद्ध में मुहम्मद गौरी को 17 बार हराया। इसके अलावा वह इतने दरियादिली थे कि मुहम्मद गौरी को कई बार माफ कर दिया और छोड़ दिया।
अठारहवीं बार मुहम्मद गौरी ने जयचंद की मदद ली और युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया। इसके बाद उन्हें बंदी बना लिया और अपने साथ लेकर चला गया। पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदाई दोनों को ही कैद कर लिया गया। मुहम्मद गौरी ने सजा के तौर पर पृथ्वीराज की आखों को गर्म सलाखों से फोड़वा दिया।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान की वीरता की अद्भुत कहानी

मुहम्मद गौरी ने चंदबरदाई से पृथ्वीराज चौहान की अंतिम इच्छा पूछने के लिए कहा, क्योंकि चंदबरदाई और पृथ्वीराज आपस में मित्र थे। पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने में माहिर थे। मुहम्मद गौरी को इस बात की जानकारी दी गई जिसके बाद उसने कला प्रदर्शन के लिए इजाजत दे दी।

पृथ्वीराज चौहान को जहां पर अपनी कला का प्रदर्शन करना था वहां पर मुहम्मद गौरी भी मौजूद था। पृथ्वीराज चौहान ने चंदबरदाई के साथ मिलकर मुहम्मद गौरी को मारने की योजना पहले ही बना ली थी। महफिल शुरू होने वाली थी तभी चंदबरदाई ने एक दोहा कहा- ‘चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान’।

चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को संकेत देने के लिए इस दोहे को पढ़ा था। इस दोहे को सुनने के बाद मोहम्मद गोरी ने जैसे ही शाब्बास’ बोला। वैसे ही अपनी आंखों को गवा चुके पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गोरी को अपने शब्दभेदी बाण से मार दिया। हालांकि सबसे दुख की बात यह है कि इसके बाद पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदाई ने दुर्गति से बचने के लिए एक दूसरे को मार दिया। ऐसे पृथ्वीराज ने अपने अपमान का बदला ले लिया। पृथ्वीराज के मरने की खबर सुनने के बाद संयोगिता ने भी अपनी जान दे दी।

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